मानसरोवर--मुंशी प्रेमचंद जी

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वेश्या मुंशी प्रेम चंद  पुरुष-समाज जितना अत्याचार चाहे कर ले। हम असहाय हैं, आत्माभिमान को भूल बैठी हैं लेकिन... सहसा सिंगारसिंह ने उसके हाथ से वह पत्र छीन लिया और जेब ...

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